Salasar Hanuman Temple
Salasar Dham or Salasar Balaji is one of the most recognized temples of India. This temple was constructed in 18th century by saint Mohandas Ji. This temple has a unique look of Lord Hanuman with a beard, a moustache, tilak on forehead, beautiful eyes and knotty eyebrows. Salasar Balaji Temple or Salasar Dham is recognized as most influential & miraculous place for all devotee of Lord Hanuman. Most of devotees visiting this place have faith and belief as per the miracle that has happened in their life, that whosoever visits this place with pure devotion has always got his wish fulfilled.
About 310 years ago, Thakur “Banwari Das Ji” was living in a village name as Naurangpur of Churu District (Rajasthan). His son “Tulsiramji” had four sons, out of which “Salam Singh” was the eldest. All the four brothers use to live in different villages named Naurangsar, Tidaki, Juliyasar and Salamsar respectively. The place where Salam Singh started residing was renamed as “Salamsar” which is now known as Salasar.
Once upon a time Thakur of Sikar, Maharaja Devisingh came to Salasar to meet Mohandas Ji for fulfilling his wish of having a son. Mohandas Ji asked him to tie a pious coconut (Shri Phal) on the branch of tree inside the temple premises and asked him to get married to Dujod village’s resident Mohabbat Singh’s daughter. After about 10 months from when Mohandas Ji predicted, a son was born to Devi Singhji.
सालासर बालाजी मंदिर या सालासर धाम भारत में भगवान हनुमान के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह मंदिर संत मोहनदासजी द्वारा १८ वीं सदी में बनाया गया था। इस मंदिर में भगवान हनुमान का रूप अनूठी है। मुख पर दाढ़ी, मूंछें, और सुंदर है। माथे पर तिलक और विकट भौहों है, जो उन्कि सुन्दर्त को अध्बुद बनाता है।
History Of Salasar Hanuman Temple
आज से लगभग ३१० वर्ष पूर्व ठाकुर बनवारीदास जी नौरंगसर (चुरु) मे रहते थे। उनके पुत्र तुलछीरामजी के चार पुत्र थे।जिसमें सालमसिंह सबसे बडे थे। ये चारों भाइ चार स्थानों में अलग अलग रेहते थे, जिनके नाम क्रमशः नौरंगसर, तिडोकी, जुलियासर तथा सालमसर है। ठाकुर सालमसिंह के उक्त स्थान पर निवास करने पर “तैतरवालों की ढाणी” को ही “सालमसर” नाम से जाना जाने लगा और कालन्तर मे सालमसर का नाम ही सालासर है। इसी ग्राम मे पन्डित सुखरामजी निवास करते थे।इनके पुर्वज रेवासा ठाकुर के यहाँ धान कूँतने (अँकन) करने का काम करते थे।और इसी के साथ ही पौराहिक कार्य भी सम्पन्न कराते थे। इनका विवाह सीकर के रूल्यणी गाँव के रहने वाले पं.लच्छिरामजी पाटोदिया की आत्मजा कान्ही देवी के साथ सम्पन्न हुआ। कुछ ही वर्षों में अच्छा सम्मान, धन एवं पुत्ररत्न की प्राप्ति हुइ।ये परिवार सहित सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे।ठाकुर सालमसिंह जब यहाँ आये तो उनकी पं.सुखरामजी से आत्मीयता हो गयी।किन्तु भाग्य की विडम्बना पं.सुखरामजी का पुत्र जब शिशु काल मे था, तब पन्डित का स्वर्गवास हो गया। उस वक्त उनका प्राण प्यारा पुत्र मात्र ५ वर्ष का था। रूल्यणी गाँव से पं.लच्छिरामजी के छहों पुत्र सालासर आ पहुँचे और अपनी शोकाकुल बहन को सान्त्वना दी।इस के पश्चात कान्हि अपने अबोध पुत्र को लेकर भाइयों सहित माइके चली गई। पं. लच्छिरामजी के छोटे छह पुत्र मोहनदास बाल्यकाल से ही श्री हनुमत भक्त थे।जैसा पं. स्वरूपनारायणजी द्वारा सं॰२०२४ में रचित लावणी की इन पन्क्तियों द्वारा स्पष्ट है –
दधीच द्विज सूंटवाला सालासर में थे सुखरामजी। पाटोदया लछिरामजी की लडकी थी कान्ही नाम जी॥ षट पुत्र पुत्री सांतवीं जन्मी रूल्याणी गाँव जी । छोटा ही छोटा पुत्र मोहनदास था गुणधाम जी ॥ पं. लच्छिरामजी के सबसे छोटे पुत्र मोहनदास के नामकरण के समय ही ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की आगे चलकर यह बालक एक तेजस्वी संत पुरुष बनेगा, जिसका यष दुनिया में चहूंदिश विस्त्रित होगा।बचपन से ही उनकी गम्भीर मुख मुद्रा को देख कर ऐसा प्रतीत होता था कि जैसे वह भगवान केध्यान मे मग्न हैं।ऐसा पुर्व जन्म के पुण्य प्रताप से ही सम्भव है।कालान्तर मे पं. लच्छिरामजी के देहान्त के पश्चात मोहनदास अपना अधिकान्ष समय ईश्वर के शरण में व्यतीत करने लगे। साथ ही उन्हें परिवार एवं संसार से विरक्ति उत्पन्न होने लगी। सामूहिक परिवार मे अधिक समय तक साथ न रहने का विचार कर कान्हि बाइ ने सालासर मे आने का सन्कल्प किया।
Miracles Of Salasar Balaji Temple
राजा देवीसिंह के हिृदय में भगवान बालाजी के दर्शन की अभिलाशा तीव्र हुइ और वह जब सालासर पहुँचे तब भक्त मोहनदासजी ने उनकी मनोकामना की पूर्ति के लिए श्रीबालाजी को एक श्रीफ़ल (नारियल) अर्पण करने को कहा और उसी श्रीफ़ल को समीपस्थ जाल वृक्ष में बाँधने की आग्या दी। श्रीमोहनदासजी ने कहा की राजन, आपके एक सम्बन्धि महोवत सिंह हैं, जो दुजोद ग्राम मे निवास करते हैं, उन्ही की कन्या से आपको एक पुत्र की प्राप्ति होगी, किन्तु देवयोग से वह पुत्र विकलांग होगा, पर उससे आप के कुल की मान प्रतिष्ठा बढेगी।