Kaalbhairav Temple In Ujjain MP:यहां शराब पीते हैं कालभैरव, कहां जाती है कोई नहीं जानता

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कालभैरव को मदिरापान कराते हुए पं. ओमप्रकाश चतुर्वेदी। फोटो 1- गोल घेरे में शराब से भरी चांदी की प्लेट। फोटो 2- मदिरापान के बाद खाली प्लेट।
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Kalabhairava drink alcohol

हमारे देश में ऐसे अनेक मंदिर हैं, जिनके रहस्य से आज तक पर्दा नहीं उठ पाया है। ऐसा ही एक मंदिर है मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित भगवान कालभैरव का। इस मंदिर के संबंध चमत्कारी बात ये है कि यहां स्थित कालभैरव की प्रतिमा शराब का सेवन करती है। प्रतिमा को शराब पीते हुए देखने के लिए यहां देश-दुनिया से काफी लोग पहुंचते हैं।

How to worship Kalabhairava

There are many temples in our country, whose secret up until today has no curtain. It is a temple in Ujjain, Madhya Pradesh Kalabhairava of God. The temple is located at the connection point is miraculous statue of Kalabhairava consumes alcohol. The statue here to drink a lot of visitors from the country and the world.

Pt temple priest. Om Prakash Chaturvedi Avanti section of the Skanda Purana, the temple is described. Pt. Chaturvedi the Vaishnava nature of the temple of God is worshiped Kalabhairava. There are also many legends attached to the temple. It was the king of Ujjain Kalabhairava Mahakala God this place is appointed to protect the city. So Kalabhairava called the city inspector. Kalabhairava eighth (November 14, Friday) we have the opportunity to tell you a few features of the temple are:

मंदिर के पुजारी पं. ओमप्रकाश चतुर्वेदी के अनुसार इस मंदिर का वर्णन स्कंदपुराण के अवंति खंड में मिलता है। पं. चतुर्वेदी के अनुसार इस मंदिर में भगवान कालभैरव के वैष्णव स्वरूप का पूजन किया जाता है। इस मंदिर से जुड़ी अनेक किवंदतियां भी प्रचलित हैं। उज्जैन के राजा भगवान महाकाल ने ही कालभैरव को इस स्थान पर शहर की रक्षा के लिए नियुक्त किया है। इसलिए कालभैरव को शहर का कोतवाल भी कहा जाता है। कालभैरव अष्टमी (14 नवंबर, शुक्रवार) के मौके पर हम आपको इस मंदिर की कुछ विशेषताएं बता रहे हैं-

भगवान कालभैरव का मंदिर क्षिप्रा नदी के किनारे भैरवगढ़ क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां भगवान कालभैरव की प्रतिमा को शराब का भोग लगाया जाता है और आश्चर्य की बात यह है कि देखते ही देखते वह पात्र जिसमें शराब का भोग लगाया जाता है, खाली हो जाता है। यह शराब कहां जाती है, ये रहस्य आज भी बना हुआ है। यहां रोज श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और इस चमत्कार को अपनी आंखों से देखती है।

How to blessed by Kalabhairava

पं. चतुर्वेदी ने बताया कि कालभैरव को शराब अर्पित करते समय हमारा भाव यही होना चाहिए कि हम हमारी समस्त बुराइयां भगवान को समर्पित करें और अच्छाई के मार्ग पर चलने का संकल्प करें। मदिरा यानी सुरा भी शक्ति का ही एक रूप है। इस शक्ति का उपभोग नहीं किया जाना चाहिए। इसका उपभोग करने वाला व्यक्ति पथभ्रष्ट हो जाता है। करीब एक दशक पहले मंदिर के चारों ओर हुई थी खुदाई

पं. चतुर्वेदी के अनुसार करीब एक दशक पहले मंदिर की इमारत को मजबूती देने के लिए बाहर की ओर निर्माण कार्य करवाया गया था। इस निर्माण के लिए मंदिर के चारों ओर करीब 12-12 फीट गहरी खुदाई की गई थी। इस खुदाई का उद्देश्य मंदिर का जीर्णोद्धार करना था, लेकिन यह खुदाई देखने के लिए काफी लोग यहां पहुंचते थे। सभी जानना चाहते थे कि जब कालभैरव शराब का सेवन करते हैं तो वह शराब कहां जाती है।

इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए खुदाई कार्य के दौरान काफी लोग आए, लेकिन खुदाई में ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे लोगों के इस प्रश्न का समाधान हो सके। इस मंदिर के बारे में कई किवंदतियां ऐसी भी हैं कि अनेक वैज्ञानिक इस मंदिर का रहस्य जानने के लिए आए, लेकिन वे भी इस चमत्कार के पीछे का कारण जान नहीं पाए।

पं. चतुर्वेदी के अनुसार जिस व्यक्ति की कुंडली में राहु दोष हो अगर वह यहां आकर भगवान कालभैरव को शराब चढ़ाए तो राहु दोष का प्रभाव कम होता है। यदि किसी व्यक्ति को पूरी मेहनत के बाद भी मान-सम्मान नहीं मिल पा रहा है तो उसे काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। काल भैरव की पूजा करने वाले भक्तों को समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।

भगवान कालभैरव का मंदिर मुख्य शहर से कुछ दूरी पर बना है। यह स्थान भैरवगढ़ के नाम से प्रसिद्ध है। कालभैरव का मंदिर एक ऊंचे टीले पर बना हुआ है, जिसके चारों ओर परकोटा (दीवार) बना हुआ है। पं. चतुर्वेदी ने बताया कि मंदिर की इमारत का जीर्णोद्धार करीब एक हजार साल पहले परमार कालीन राजाओं ने करवाया था।

इस निर्माण कार्य के मंदिर की पुरानी सामग्रियों का ही इस्तेमाल किया गया था। मंदिर बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़कर बनाया गया था। यह मंदिर आज भी मजबूत स्थिति में दिखाई देता है। प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि (कालभैरव अष्टमी) को भगवान कालभैरव की सवारी निकाली जाती है। पुराणों में जिन अष्टभैरव का वर्णन है, उनमें ये प्रमुख हैं।

इस मंदिर में भगवान कालभैरव की प्रतिमा सिंधिया पगड़ी पहने हुए दिखाई देती है। यह पगड़ी भगवान ग्वालियर के सिंधिया परिवार की ओर से आती है। यह प्रथा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। इस संबंध में मान्यता है कि करीब 400 साल पहले सिंधिया घराने के राजा महादजी सिंधिया शत्रु राजाओं से बुरी तरह पराजित हो गए थे। उस समय जब वे कालभैरव मंदिर में पहुंचे तो उनकी पगड़ी यहीं गिर गई थी।

तब महादजी सिंधिया ने अपनी पगड़ी भगवान कालभैरव को अर्पित कर दी और शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए भगवान से प्रार्थना की। इसके बाद राजा ने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की और लंबे समय तक कुशल शासन किया। भगवान कालभैरव के आशीर्वाद से उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी कोई युद्ध नहीं हारा। इसी प्रसंग के बाद से आज भी ग्वालियर के राजघराने से ही कालभैरव के लिए पगड़ी आती है।

भोपाल-अहमदाबाद रेलवे लाइन पर स्थित उज्जैन एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां लगभग हर ट्रेन का स्टापेज है। मध्य प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर से उज्जैन मात्र 60 किलोमीटर दूर है। यह दूरी बस या निजी वाहन से आसानी से तय की जा सकती है।

कालभैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर घुसते ही कुछ दूर चलकर बांई ओर पातालभैरवी का स्थान है। इसके चारों ओर दीवार है। इसके अंदर जाने का रास्ता बहुत ही संकरा है। करीब 10-12 सीढिय़ां नीचे उतरने के बाद तलघर आता है। तलघर की दीवार पर पाताल भैरवी की प्रतिमा अंकित है। ऐसी मान्यता है कि पुराने समय में योगीजन इस तलघर में बैठकर ध्यान करते थे।

कालभैरव मंदिर से कुछ दूरी पर विक्रांत भैरव का मंदिर स्थित है। यह मंदिर तांत्रिकों के लिए बहुत ही विशेष है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर की गई तंत्र क्रिया कभी असफल नहीं होती। यह मंदिर क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। विक्रांत भैरव के समीप ही श्मशान भी है। श्मशान और नदी का किनारा होने से यहां दूर-दूर से तांत्रिक तंत्र सिद्धियां प्राप्त करने आते हैं।