Nepal Festival
नेपाल के बरियारपुर में 28 नवंबर से शुरू हुए गढ़िमाई पर्व में प्रथा के नाम पर लाखों जानवरों को मारा जाएगा। हर पांच साल में एक बार आयोजित होने वाले इस पर्व में भैंस, बकरी, भेड़ सहित कई अन्य पशुओं की बलि दी जाती है। मान्यता है कि पशुबलि से देवी-देवताओं को खुश किया जा सकता है और बदले में समृद्धि और ऐश्वर्य का वरदान प्राप्त किया जा सकता है। आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाले संगठनों ने इसका कड़ा विरोध किया है लेकिन इसके बावजूद हजारों की संख्या में पशुओं-पक्षियों को धार्मिक अनुष्ठान की आड़ में मारा जाता है।
बारा जिले के एक अधिकारी योगेन्द्र दुलाल ने बताया कि मंदिरों में सुबह से ही हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं का पहुंचना शुरू हो गया है और पशुबलि का अनुष्ठान धडल्ले से हो रहा है। इसकी शुरूआत पांच पशुओं, एक बकरी, एक चूहा, एक मुर्गा, एक सूअर और एक कबूतर की बलि के साथ की गई। इस मौके पर पांच हजार भैंसों को एक खुले मैदान में बांध कर रखा गया था और उनकी बलि के लिए बडी धारदार तलवारें तैयार करके रखी गई थीं। शनिवार तक चलने वाले इस धार्मिक उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में बकरे और मुर्गियों की बलि भी दी जाएगी।
मंदिर के पुजारियों ने बताया कि बलि के बाद इन जानवरों के सिर जमीन में गाड़ दिए जाएंगे, जबकि उनकी खाल व्यापारियों को बेच दी जाएंगी।
बलि के दौरान जीव संरक्षक संगठनों के कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं के बीच किसी तरह के टकराव को रोकने के लिए धार्मिक स्थलों के आसपास बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। काठमांडू से करीब 100 किलोमीटर दूर बारा जिले में होने वाले इस पर्व में पिछली बार (साल 2009 में) करीब 250,000 पशुओं को मारा गया था।
प्रथा का होता है विरोधइतने बड़े पैमाने पर जानवरों को मारने की इस प्रथा का काफी विरोध भी होता है। पशुओं के हित में काम करने वाली संस्थाओं के अनुसार, यह क्रूर प्रथा है और इसे बंद किया जाना चाहिए। ह्यूमेन सोसाइटी इंटरनेशनल के निदेशक जयासिम्हा नुगूहल्ली ने इसके बारे में कहा, "जमीन पर बिखरा अथाह खून, दर्द से तड़पते जानवर और इस दृश्य को देखते छोटे बच्चे। यह काफी क्रूर है। हजारों श्रद्धालु जानवरों के खून से सने होते हैं। यहां तक कि कुछ श्रद्धालु जानवरों का खून भी पी रहे होते हैं।" भारत में कई जगह ऐसी हैं, जहां पशु बलि पर प्रतिबंध है, वहां के लोग भी इसमें हिस्सा लेने के लिए नेपाल पहुंचते हैं। करीब एक महीने तक चलने वाले इस पर्व में शुक्रवार और शनिवार को पशु बलि दी जाएगी।
Gadhimai bariarpur Nepal festival began on November 28 million animals will be killed in the name of tradition. To be held once in every five years, the festival buffalo, goat, sheep are sacrificed animals, including other. Recognition of the animal sacrifices to appease the gods and in turn can be blessed with prosperity and opulence.
Bara district officials said Yogendra Dulal temples from morning to reach thousands of devotees have begun gaining Ddlle ritual animal sacrifices. The introduction of five animals, a goat, a rat, a rooster, a pig and a dove made of sacrificial. On the occasion of the five thousand buffalo was tied to an open field and for their sacrifices were made by preparing a large sharp swords. Saturday-long religious festival of the sacrifice will be a large number of goats and chickens.
After the slaughter of the priests in the temple of the head of animals will be buried in the ground, while their skins will be sold to merchants. During sacrificial animal guardian organizations prevent a showdown between activists and pilgrims shrines guards are deployed in large numbers around. In Bara district, about 100 km from Kathmandu to the last time the festival (in 2009) was killed around 250,000 animals.
Such large-scale killing animals is also opposed to the practice. According to the institutions working in the interests of the animals, it is a cruel practice and it must be stopped. Human Society International's director Jayasimha Nuguhlli said about it, "bottomless blood spread on the ground, overlooking the little baby animals suffering from pain. It is quite cruel. Thousands of devotees are soaked in the blood of animals. Even some devotees are drinking the blood of animals. " In India, there are many places where there are restrictions on animal sacrifice, the people of Nepal to take part in this reach. In a month-long festival on Friday and Saturday will be slaughtered.