how to worship lord shani
विधि व रोचक बातें,शनिवार को अमावस, राशि अनुसार करेंगे ये उपाय तो दूर हो सकती है दरिद्रता,शनिश्चरी अमावस्या 22 को, जानिए 2015 में कब बनेगा ये योग व उपाय"> कल (22 नवंबर) शनिश्चरी अमावस्या है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति इस दिन भगवान शनिदेव के निमित्त व्रत रखता है तथा पूजन करता है, शनिदेव उसका कल्याण करते हैं। शनिदेव की पूजन विधि इस प्रकार है-
पूजन विधि - शनिश्चरी अमावस्या के दिन सुबह जल्दी स्नान आदि से निवृत्त होकर सबसे पहले अपने इष्टदेव, गुरु और माता-पिता का आशीर्वाद लें। सूर्य आदि नवग्रहों को नमस्कार करते हुए श्रीगणेश भगवान का पंचोपचार (स्नान, वस्त्र, चंदन, फूल, धूप-दीप) पूजन करें। - इसके बाद लोहे का एक कलश लें और उसे सरसों या तिल के तेल से भर कर उसमें शनिदेव की लोहे की मूर्ति स्थापित करें तथा उस कलश को काले कंबल से ढंक दें। इस कलश को शनिदेव का रूप मानकर षोड्शोपचार(आह्वान, स्थान, आचमन, स्नान, वस्त्र, चंदन, चावल, फूल, धूप-दीप, यज्ञोपवित, नैवेद्य, आचमन, पान, दक्षिणा, श्रीफल, निराजन) पूजन करें। - यदि षोड्शोपचार मंत्र याद न हो तो इस मंत्र का उच्चारण करें-ऊं शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवंतु पीतये। शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:।। ऊं शनिश्चराय नम:।।
- पूजा में मुख्य रूप से काले गुलाब, नीले गुलाब, नीलकमल, खिचड़ी (चावल व मूंग की) अर्पित करें। इसके बाद इस मंत्र से क्षमायाचना करें-नमस्ते कोण संस्थाय पिंगलाय नमोस्तुते। नमस्ते बभ्रुरूपाय कृष्णाय च नमोस्तुते।। नमस्ते रौद्रदेहाय नमस्ते चांतकाय च। नमस्ते यमसंज्ञाय नमस्ते सौरये विभो।। नमस्ते मंदसंज्ञाय शनैश्चर नमोस्तुते। प्रसादं कुरूमे देवेशं दीनस्य प्रणतस्य च।।
- इसके बाद पूजा सामग्री सहित शनिदेव के प्रतीक कलश को (मूर्ति, तेल व कंबल सहित) किसी योग्य ब्राह्मण को दान कर दें। इस प्रकार पूजन के बाद दिन भर निराहार रहें और यथाशक्ति इस मंत्र का जप करें- ऊं शं शनिश्चराय नम:। - शाम को सूर्यास्त से कुछ समय पहले अपना व्रत खोलें। भोजन में तिल व तेल से बने भोज्य पदार्थों का होना आवश्यक है। इसके बाद यदि हनुमानजी के मंदिर जाकर दर्शन करें तो और भी बेहतर रहेगा। जानिए क्यों है शनिदेव की नजर अशुभहिंदू धर्म में शनिदेव की नजर को अशुभ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जिसे भी शनि देख ले उसके बुरे दिन शुरू हो जाते हैं। आखिर क्यों शनि की नजर अशुभ है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में इसके पीछे एक कथा का वर्णन है, जो इस प्रकार है-
सूर्य पुत्र शनि का विवाह चित्ररथ नामक गंधर्व की कन्या से हुआ था, जो स्वभाव से बहुत ही उग्र थी। एक बार जब शनिदेव भगवान की आराधना कर रहे थे, तब उनकी पत्नी ऋतु स्नान के बाद मिलन की कामना से उनके पास पहुंची, लेकिन शनिदेव भगवान भक्ति में इतने लीन थे कि उन्हें इस बात का पता ही नहीं चला।
जब शनिदेव का ध्यान भंग हुआ, तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। इससे क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि पत्नी होने पर भी आपने मुझे कभी प्रेम की दृष्टि से नहीं देखा। अब आप जिसे भी देखेंगे उसका कुछ न कुछ बुरा हो जायेगा। इसी कारण शनि की दृष्टि में दोष माना गया है। 22 नवंबर को अगहन मास की अमावस्या है। ये अमावस्या शनिवार को होने के कारण इस बार शनिश्चरी अमावस्या का योग बन रहा है। धार्मिक मान्यता है कि शनिश्चरी अमावस्या के दिन शनिदेव के उपाय व दान करने से वे प्रसन्न होते हैं। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती, ढय्या व महादशा हो उनके लिए शनिश्चरी अमावस्या के दिन किए गए उपाय व दान विशेष फल प्रदान करने वाले होते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषी पं. विनय भट्ट के अनुसार पिछली बार शनिश्चरी अमावस्या का योग 26 जुलाई, 2014 को बना था, वहीं अगली बार ये योग 18 अप्रैल, 2015 को बनेगा। धर्म ग्रंथों के अनुसार शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही उसे देते हैं। शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय इस प्रकार हैं-
1- किसी शनिवार को शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा। 2- शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार को श्रवण नक्षत्र में किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।